हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 97-102 का हिन्दी अनुवाद'बुआ कुन्ती के गर्भ से सूर्यदेव का संयोग पाकर कन्यावस्था में जो प्रथम पुत्र उत्पन्न हुआ था तथा जन्म लेने के बाद जो सूत-भाव को प्राप्त हो गया है, उस कर्ण से भी मैं अपरिचित नहीं हूँ। युद्ध की इच्छा रखने वाले समस्त धृतराष्ट्र-पुत्रों को भी मैं जानता हूँ। शापरूपी वज्रपात के कारण राजा पाण्डु का जो निधन हुआ है, वह भी मुझसे छिपा नहीं है। अत: देवराज इन्द्र! आप देवताओं को सुख देने के लिये स्वर्गलोक को पधारिये। मेरे सामने अर्जुन का कोई भी शत्रु उसे परास्त नहीं कर सकेगा। अर्जुन के लिये ही मैं महाभारत युद्ध समाप्त होने पर उन समस्त पाण्डवों को कुन्ती की सेवा में सकुशल लौटा दूँगा। देवेन्द्र! आपका पुत्र अर्जुन मुझसे जो कुछ कहेगा, उसे मैं आपके स्नेह-पाश से बँधकर आज्ञाकारी सेवक की भाँति पूर्ण करूँगा’। सत्यप्रतिज्ञ श्रीकृष्ण के प्रसन्नतापूर्वक कहे गये इस प्रिय वचन को सुनकर देवेश्वर इन्द्र साक्षात स्वर्गलोक को चले गये। इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णुपर्व में गोविन्द का अभिषेक विषयक उन्नीसवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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