हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 18 श्लोक 61-66

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्‍टादश अध्याय: श्लोक 61-66 का हिन्दी अनुवाद


तत्‍पश्चात वर्षा से डरे हुए व्रज के गोप अपने बर्तन भाड़े और जुते हुए छकडे़ लेकर उस पर्वतनिर्मित गृह में प्रविष्ट हो गये। श्रीकृष्‍ण के उस कर्म को, जो देवताओं के लिये भी असम्‍भव है, देखकर व्रजधारी इन्‍द्र ने उन मेघों को रोक दिया। व्रज को नष्‍ट कर देने की उनकी प्रतिज्ञा झूठी हो गयी। सात रात तक पृथ्‍वी पर वर्षा करने के पश्चात मेघों से घिरे हुए वृत्रनाशक इन्‍द्र उत्‍सवहीन (आनन्‍दशून्‍य) हो (अथवा व्रज में मनाये जाने वाले उत्सव से वंचित हो) उत्तम स्‍वर्गलोक को लौट गये। सात रात बीत जाने पर जब इन्‍द्र का सारा प्रयत्‍न निष्‍फल हो गया, बादल नष्‍ट हो गये, आकाश निर्मल हो गया और दिन में सूर्यदेव देदीप्‍यमान हो उठे, उस समय सारी गोएं फिर उसी मार्ग से जैसे आयी थी, उसी तरह लौट गयीं। सारा व्रज पुन: अपने निवास स्‍थान को चला गया। स्थिर भाव से खड़े हुए वरदायक भगवान श्रीकृष्ण ने भी प्रसन्‍न होकर फिर जगत के कल्‍याण के लिये उस श्रेष्ठ पर्वत को अपने स्‍थान पर स्‍थापित कर दिया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में श्रीकृष्‍ण का गोवर्धनधारण विषयक अठारहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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