हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 120 श्लोक 39-48

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: विंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 39-48 का हिन्दी अनुवाद

जो नागपाश में बँधे हुए थे और उषा ने जिनके चित्त को चुरा लिया था, उन अनिरुद्ध के वज्र तुल्य पिंजरे को अपने हाथ के अग्रभाग से तोड़-फोड़कर देवी ने बाणपुर में अवरुद्ध हुए वीर अनिरुद्ध को मुक्त कर दिया और कृपा करने के लिये उद्यत हो उन्हें सान्त्वना देते हुए इस प्रकार कहा। श्रीदेवी ने कहा- 'अनिरुद्ध! चक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण शीघ्र आकर तुम्हें पूर्णत: इस बन्धन से छुड़ायेंगे, तब तक कुछ काल तक इस कष्ट को सहन करो। वे दैत्‍यसूदन श्रीहरि बाणासुर की सहस्र भुजाओं का छेदन करके तुम्हें अपनी पुरी को ले जायँगे।' तदनन्तर चन्द्रमा के समान कमनीय मुख वाले अनिरुद्ध ने प्रसन्न होकर पुन: देवी का स्तवन किया। अनिरुद्ध बोले- कलयाणस्वरूपे! वरदायिनि देवि! आपको नमस्कार है। देवशत्रुओं का नाश करने वाली देवि! आपको प्रणाम है। इच्छानुसार विचरने वाली सदाशिवे! आपको नमस्कार है। सबका हित चाहने वाली सर्वप्रिये! आपको नमस्‍कार है।

शत्रुओं को सदा भय देने वाली देवि! आपको प्रणाम है तथा बन्धन से छुड़ाने वाली देवि! आपको नमस्कार है। ब्रह्माणि! इन्द्राणि! रुद्राणि! भूत, वर्तमान और भविष्यस्वरूपे शिवे! सब प्रकार के भयों से मेरी रक्षा करें। नारायणि! आपको नमस्कार है। जगत की रक्षा करने वाली प्रिय देवि! आपको नमस्कार है। मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाली महाव्रतधारिणी भक्तप्रिये! जगन्मात:! गिरिराज नन्दिनि! वसुन्धरे! विशाल नेत्रों वाली नारायणि! आप मेरी रक्षा कीजिये! आपको नमस्‍कार है। दानवों को भय देने वाली देवि! सब प्रकार के दु:खों से मेरा परित्राण कीजिये। रुद्रप्रिये! भक्तों की पीड़ा दूर करने वाली महाभागे! मैं चरणों में मस्तक झुकाकर आप देवी को नमस्कार करता हूँ। आपने मुझे बन्धन में रहते हुए भी मुक्त कर दिया।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! जो एकाग्रचित्त होकर इस पवित्र आर्यास्तोत्र का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में जाता है और यदि बन्धन में पड़ा हो तो उससे मुक्त हो जाता है। जैसा कि व्यास जी का सत्य वचन है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में आर्यास्तव विषयक एक सौ बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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