हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकादश अध्याय: श्लोक 54-60 का हिन्दी अनुवाद
यह वन आकाश की भाँति अवलम्ब शून्य हो गया है। विषमिश्रित अन्न के समान इसका स्पर्श भी दु:खदायक है। कालिय के उन विश्वसनीय सचिवों द्वारा यह सदा सब ओर से सुरक्षित है। इस ह्नद के दोनों तट सिवार, कमल तथा छोटी-छोटी लताओं से भरे हुए वृक्षों से सुशोभित होते हैं। मुझे यहाँ तक पहुँचने के लिये मार्ग बनाना होगा। इसी दृष्टि से मुझे इस नागराज का दमन करना है, जिससे जल देने वाली यह नदी कल्याणकारी जल का आश्रय हो सके। इस नाग का मेरे द्वारा दमन हो जाने पर यहाँ की नदी समूचे व्रज के उपभोग में आने योग्य हो जायेगी। यहाँ सब ओर सुखपूर्वक विचरण करना सम्भव हो जायगा तथा यह नदी समस्त तीर्थों और सुखों का आश्रय हो जायगी। इसीलिये व्रज में मेरा यह निवास हुआ है और इसीलिये मैंने गोपों में अवतार ग्रहण किया है। कुमार्ग पर स्थित हुए इन दुरात्माओं का दमन करने के लिये ही यहाँ मेरा अवतार हुआ है। मैं बालकों के खेल-खेल में ही इस कदम्ब पर चढ़कर उस घोर ह्नद में कूद पड़ूँगा और कालिय नाग का दमन करूँगा। ऐसा करने पर संसार में मेरे बाहुबल की ख्याति होगी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में बाललीला के प्रसंग में यमुना वर्णन नामक ग्यारहवां अध्याय पूरा हुआ ।
|