हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 118 श्लोक 35-55

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 35-55 का हिन्दी अनुवाद

उषा के ऐसा कहने पर अर्थतत्त्व के ज्ञान में कुशल कुम्भाण्डकुमारी चित्रलेखा ने पुन: यह न्यायोचित बात कही- देवि! उस पुरुष का न तो कोई कुल जानता है, न उसकी कीर्ति और पुरुषार्थ का ही किसी को ठीक-ठीक पता है, फिर इस विषय को लेकर तुम क्यों मोहित हो रही हो। शुभे! भीरु! जिसको तुमने सपने में देखा है, उसे दूसरे किसी ने न तो कभी देखा है और न उसके विषय में कुछ सुना ही है, फिर हम तुम्हारे उस रति तस्कर का पता कैसे लगा सकती हैं? मतवाली-सी प्रतीत होने वाली और कजरारे नेत्रों वाली सखि! जिसने अन्त:पुर में घुसकर तुम्हारे रोते रहने पर भी बलपूर्वक तुम्हारा उपभोग किया है, वह कोई साधारण मनुष्य नहीं है। जो तुम्हारे इस लोक विख्यात नगर में बलपूर्वक अकेला ही घुस आया, वह कोई शत्रुमर्दन शूरवीर ही हो सकता है। बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दोनों महाबली अश्विनीकुमार ये भयानक पराक्रमी देवता भी शोणितपुर में प्रवेश नहीं कर सकते। उपर्युक्त देवता यदि सौ गुने होकर आ जाये तो उनसे विशिष्ट यह शुत्रुसूदन वीर होगा, जिसने बाणासुर के मस्तक पर पैर रखकर शोणितपुर में प्रवेश किया है। कमललोचने! जिस नारी का पति ऐसा युद्ध विशारद वीर न हो, उसके जीवन अथवा भोगों से क्या लाभ?

तुम धन्य हो, तुम पर देवी का महान अनुग्रह है, क्योंकि तुम्हें पार्वती देवी के प्रसाद से ऐसा कामदेव-तुल्य पराक्रमी पति प्राप्त हुआ है। इस समय जो यह सबसे महान कार्य है, वह मेरे मुख से सुना। पहले तुम्हें इस बात को जान लेना चहिये कि वह किसका पुत्र है? उसका क्या नाम है? और वह किस कुल में उत्पन्न हुआ है?' उसके ऐसा कहने पर वहाँ काम मोहित उषा कुम्भाण्ड-कुमारी से बोली- 'सखि! यह सब मैं कैसे जानूँगी। सखि! तुम्हीं कोई उपाय सोचो, मुझे तो कोई उत्तर नहीं सूझता। अपने कार्य में प्राय: सब लोग मोहित हो जाते हैं। अत: तुम्हीं कोई ऐसा उपाय करो, जिससे मुझे नूतन जीवन प्राप्त हो।' उषा की यह बात सुनकर उसकी सखी कुम्भाण्ड कुमारी रामा (जो चित्रलेखा अप्सरा के अंश से उत्पन्न होने के कारण चित्रलेखा भी कही जाती थी) रोती हुई उषा से पुन: इस प्रकार बोली- 'विशाल नेत्रों वाली सखि! तुम यह बात शीघ्र ही चित्रलेखा अप्सरा को सूचित कर दो, वह तुम्हारे संधि-विग्रह (मन्त्रणा देने) के कार्य में सर्वथा कुशल है। उसे समस्त त्रिलोकी की सारी बातें सदा ज्ञात रहती हैं।' उसके ऐसा कहने पर उषा को तत्काल बड़ा हर्ष और विस्मय हुआ।

उसने अपनी प्यारी सखी चित्रलेखा नामक अप्सरा को बुलवाकर दोनों हाथ जोड़ दीनभाव से अपना हार्दिक दु:ख निवेदन किया। उषा की कही हुई बात सुनकर सखी चित्रलेखा ने उस यशस्विनी बाणपुत्री को आश्वासन दिया। तब आश्चर्य चकित हुई उषा ने अपनी सखी चित्रलेखा नामक अप्सरा को सम्बोधित करके बड़े प्यार से यह कठिनाई से कहने योग्‍य बात कही- भामिनि! मैं तुमसे जो उत्तम बात कहती हूँ, उसे सुनो। मेरे प्रियतम पति बड़े ही कमनीय हैं, उनके नेत्र प्रफुल्‍ल कमल दल के समान सुन्दर है, वे मतवाले हाथी के समान मन्दगति से चलते हैं, पतली कमर वाली सखि! यदि तुम आज मेरे उन प्राणनाथ को यहाँ नहीं ले आओगी तो मैं शीघ्र ही अपने प्राणों का परित्याग कर दूँगी। यह सुनकर चित्रलेखा उषा का हर्ष बढ़ाती हुई धीरे-धीरे यों बोली- 'उत्तम व्रत का पालन करने वाली भामिनि! तुम्हारे इस मनोरथ को मैं किसी तरह जान नहीं सकती हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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