हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 109 श्लोक 63-84

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 63-84 का हिन्दी अनुवाद

जो पितामह ब्रह्मा जी के मुख से प्रकट हुए हैं, रौद्र हैं, रुद्रदेव के अंगों से उत्पन्न हुए हैं, कुमार कार्तिकेय के स्वेद से प्रकट हुए हैं तथा जो वैष्णव आदि ज्वर हैं, जो महाभयंकर, महापराक्रमी, दर्पयुक्त तथा महाबली हैं, क्रोधयुक्त अथवा क्रोध रहित हैं, जिनका स्वभाव कू्र है, जो देवताओं के समान स्वरूप धारण करने वाले हैं, जो रात्रि में विचरने वाले हैं, जिनके गले में आयल हैं, जिनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ें हैं, जिन्हें विग्रह प्रिय है, जिनके पेट लम्बे, कूल्हे मोटे और आँखें पिंगलवर्ण की हैं, जो विश्वरूपधारी हैं, जिनके हाथों में शक्ति, ऋष्टि, शूल, परिघ, प्रास, ढाल और तलवार आदि अस्त्र-शस्त्र शोभा पाते हैं, पिनाक, वज्र, मुसल और ब्रह्मदण्ड नामक आयुध जिन्हें प्रिय हैं, जो दण्ड और कुण्ड धारण करते हैं, शूरवीर हैं, मस्तक पर जटा और मुकुट धारण किये रहते हैं।

वेद और वेदांग में कुशल हैं, नित्य यज्ञोपवीतधारी हैं, माथे पर सर्प का मुकुट धारण करते हैं, जिनके कानों में कुण्डल और भुजाओं में भुजबन्ध शोभा पाते हैं, जो वीर हैं, नाना प्रकार के वस्त्र पहनते हैं, विचित्र माला और अनुलेप धारण करते हैं, जिनके मुख हाथी, घोड़े, ऊँट, रीछ, बिलाव, सिंह, व्याघ्र, सूअर, उल्लू, गीदड़, मृग, चूहों और भैसों के समान हैं, जो बौने, विकट आकार वाले, कुबड़े, विकराल तथा कटे हुए केश वाले हैं, इनके सिवा जो लाखों की संख्या में सहस्रों जटाएँ धारण करने वाले हैं, जिनमें से कोई कैलास पर्वत के समान श्वेत, कोई दिनकर के समान दीप्तिमान, कोई मेघों के समान काले और कोई अन्चराशि के समान नील हैं, जो मांस रहित कंकाल से दिखायी देते हैं, जिनकी पिण्डलियाँ बहुत मोटी हैं, जो मुँह बायें रहने के कारण बड़े भयंकर प्रतीत होते हैं, बावड़ी, पोखरे, कुएँ, समुद्र, नदी, श्मशान भूमि, पर्वत, वृष तथा सूने घरों में निवास करने वाले हैं।

ये ग्रह सदा सब ओर से मेरी रक्षा करें। महागणपति, नन्‍दी, महाबली, महाकाल, लोक भयंकर माहेश्वर तथा वैष्‍णम ज्‍वर, ग्रामणी, गोपाल, भृंगरीटि, गणेश्वर, देव, वामदेव, घण्‍टाकर्ण, करंधम, श्वेतमोद, कपाली, जम्‍भक, शत्रुतापन, मज्‍जन, उन्‍मज्‍जन, संतापन, विलापन, निजघास, अघस, रथूणाकर्ण, प्रशोषण, उल्‍कामाली, धधम, ज्‍वालामाली, प्रमर्दन, संघट्टन, संकुटन, काष्ठभूत, शिवंकर, कूष्‍माण्‍ड, कुम्‍भमूर्धा, रोचन, वैकृत ग्रह, अनिकेत, सुरारिघ्र, शिव, अशिव, क्षेमक, पिशिताशी, सुरारि, हरिलोचन, भीमक, ग्राहक, अग्रमय ग्रह, उपग्रह, अर्यक, स्‍कन्‍दग्रह, चपल, असमवेताल, तामस, सुमहाकपि, हृदयोद्वर्तन, ऐड, कुण्‍डाशी, कंकणप्रिय, हरिश्‍मश्रु तथा मन और वायु के समान वेगशाली गरुत्‍मान्, पार्वती के रोष से उत्‍पन्न हुए सैकड़ों और हजारों गण, जो शक्तिमान, धैर्यवान, ब्राह्मण भक्त और सत्‍यप्रतिज्ञ हैं तथा प्रत्‍येक युद्ध में शत्रुओं की सम्‍पूर्ण कामनाओं का विनाश करने वाले हैं; इन सबका रात और दिन में दुर्गम संकट के अवसरों पर जब-जब कीर्तन किया जाय, तब-तब वे समस्‍त गणपति अपने सारे गुणों और सम्‍पूर्ण गणों के साथ सदा मेरी रक्षा करें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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