हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टाधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-36 का हिन्दी अनुवादउन्होंने कामदेव के लक्षणों से सम्पन्न अपने ज्येष्ठ पुत्र प्रद्युम्न को तथा पुत्रवधू मायावती को भी देखा। इससे जनार्दन के चित्त में बड़ा हर्ष हुआ। वे सहसा देवता के समान दीप्तिमती देवी रुक्मिणी से बोले- 'देवि! यह वही तुम्हारा पुत्र है, जो इस समय धनुष धारण करके तुम्हारे पास आया है। इसने माया युद्ध विशारद शम्बरासुर का वध करके उसकी ये सारी मायाएं भी हर ली हैं, जिनके बल पर वह देवताओं को सताया करता था। यह तुम्हारे पुत्र की सती साध्वी शुभलक्षणा पत्नी है। इसका नाम मायावती है। यह शम्बरासुर के घर में चिरकाल तक रही है। यह कहीं शम्बरासुर की स्त्री न हो, ऐसी बात सोचकर तुम मन में व्यथित न होना। पूर्वकाल में जब कामदेव का शरीर नष्ट हो गया और वे अनंग हो गये, उस समय उनकी प्यारी पत्नी जो रति थी, वही यह मायावती है। यह शम्बरासुर की वल्लभा कभी नहीं रही है। यह शुभलक्षणा सुन्दरी सदा मायामय रूप से ही उस दैत्य को मोह में डाले रखती थी। यह कुमारावस्था में कभी उसके वश में नहीं हुई। अपनी माया से एक मनोहर नारी का रूप रचकर उसी को शम्बरासुर के शयनागार में प्रविष्ट करती थी। यह सुन्दरी मेरे पुत्र की पत्नी तथा तुम्हारी बहू है। यह लोककमनीय रूप वाले प्रद्युम्न की मनोमय (संकल्पमय) सहायता करेगी। यह मेरी आदरणीय ज्येष्ठ बहू है, इसे घर के भीतर ले चलो। चिरकाल से नष्ट हुआ तुम्हारा पुत्र फिर आ गया। इसे अपनाओ।' वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! श्रीकृष्ण का यह कथन सुनकर उस समय देवी रुक्मिणी को अनुपम हर्ष प्राप्त वे बोली- 'अहो! आज अपने वीर पुत्र के मिल जाने से मैं परम धन्य हो गयी। अब मेरी कामना सफल हो गयी। सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो गया। चिरकाल से खोये हुए पुत्र का आज मुझे उसकी पत्नी के साथ दर्शन हुए। बेटा! आओ, अपनी पत्नी के साथ इस घर के भीतर प्रवेश करो।' तदनन्तर प्रद्युम्न ने अपने पिता श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी के चरणों में प्रणाम करके अपने ताऊ महाबली हलधर का भी पूजन किया। शत्रुवीरों का संहार करने वाले पराक्रमी भगवान श्रीकृष्ण ने बलवानों में श्रेष्ठ प्रद्युम्न को उठाकर हृदय से लगाया और मस्तक सूँघकर अपना स्नेह प्रदान किया। सोने के आभूषणों से विभूषित हुई देवी रुक्मिणी ने अपनी उस पुत्रवधू को उठाकर हृदय लगा लिया और उसे सर्वतोभावेन अपनाकर स्नेह से गद्गद वाणी द्वारा उसका स्वागत किया। जैसे देवमाता अदिति ने शची और इन्द्र को देव भवन में प्रविष्ट किया था, उसी प्रकार रुक्मिणी ने पत्नी के साथ आये हुए पुत्र से मिलकर उसका भवन के भीतर प्रवेश कराया। इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में प्रद्युम्न का आगमन विषयक एक सौ आठवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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