हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चषष्टितम अध्याय: श्लोक 51-55 का हिन्दी अनुवाद
देवी सत्यभामा ने ललाट में प्रियतम के प्रति रोषसूचक चिह्न के तौर पर हिम और चन्द्रमा के समान श्वेत दुकूलपट्ट बांध लिया और उस ललाट के किनारे-किनारे सरस (गीला) लाल चन्दन पोत लिया। उन बातों को याद कर करके वहाँ खड़े तकिये वाले पलंग पर बैठी हुई वह देवी रोषपूर्वक सिर हिला रही थी और सारे आभूषणों को उतारकर उसने अपने केशों को एक वेणी के रुप में बांध लिया था। आपको अकारण ही क्रोध हुआ है। ऐसा कहकर जब दासियों ने उन्हें अपने कोप-भवन से बाहर चलने के लिये खींचा, उस समय उत्तम कुल में उत्पन्न (अथवा परिजनों से युक्त) होने पर भी झुकी भौंहों वाली सत्यभामा ने रोषवश बारम्बार लम्बी सांस खींचकर हस्तगत क्रीड़ाकमल को नखों से नोच-नोचकर चूर्ण-सा कर दिया। इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पुराण में पारिजात हरण विषयक पैंसठवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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