हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 59 श्लोक 36-40

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 59 श्लोक 36-40

Prev.png

 

वह्नेरिव शिखां दीप्तां मायां भूमिगतामिव।
पृथिवीमिव गम्भरामुत्थितां पृथिवीतलात्।।36।।

मरीचिमिव सोमस्य सौम्यां स्त्रीविग्रहां भुवि।
श्रीमिवाग्सयां विना पद्मं भविष्यां श्रीसहायिनीम्।
कृष्णेन मनसा दृष्टां दुर्निरीक्ष्यां सुरैरपि।।37।।

श्यामावदाता स ह्यासीत् पृथुचार्वायतेक्षणा।
ताम्रौष्ठनयनापांगी पीनोरुजघनस्तनी।।38।।

बृहती चारुसर्वांगी तन्वी शशिसितानना।
ताम्रतुंगनखी सुभ्रूर्नीलकुंजितमूर्धजा।।39।।

अत्यर्थे रूपत: कान्ता पीनश्रोणिपयोधरा।
तीक्ष्णशुक्लै: समैर्दन्तै : प्रभासद्भिरलंकृता।।40।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः