हौ प्रभु जनमजनम की चेरी ।
भीषम भवन रहित हरिनी ज्यौ, लुब्धक असुर सैन मिलि घेरी ।।
अति संकट द्विज बेगि पठायौ, कहँ लौ कहौ कहौ बहुतेरी ।
प्रातकाल सिसुपाल काल तै, जदुपति आवहिं नैकु सबेरी ।।
कछु बिपरीत बात नहिं आवै, उपजी रीति ग्राह गज केरी ।
'सूरदास' प्रभु कृष्न नृपति बिनु, प्रान बिना तन लागत पेरी ।।4172 ।।