हेली हिलग की पहिचानि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


हेली हिलग की पहिचानि।
जौ पै हिलग हिए मैं है री, कहा करै कुलकानि।।
हिलग पतग करी दीपक सौ, तन सौप्यौ है आनि।
कसक्यौ नहीं जरत ज्वाला मैं, सही प्रान की हानि।।
हिलग चकोर करी है ससि सौ, पावक चुगत न मानि।
हिलगहि नाद स्वाद मृग मोह्यौ, बिध्यौ पारधी तानि।।
हिलग आनि बाँध्यौ सब गुन बिच, मधुप कमल हित जानि।
सोई हिलग लाल गिरिधर सौ, ‘सूरदास’ सुख दानि।। 3289।।

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