हरै बलबीर बिना को पीर?
सारँग-पति प्रगटे सारँग तैं, जानि बीन पर भीर।
सारँग बिकल भयौ सारँग मैं, सारँग तुल्य सरीर।
परयौ काम सारँग-बासी सौं, राखि लियौ बलबीर।
सारँग इक सारँग ह्वै लोट्यो, सारँग ही कै तीर।
सारँग-पानि राय ता ऊपर, गए परीच्छत कीर।
गहैं दुष्ट द्रुपदी कौ सारँग, नैननि बरसत नीर।
सूरदास प्रभु अधिक कृपा तैं, सारँग भयौ गँभीर।।33।।