हरि हौ स‍ब पतितनि कौ राउ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग




हरि, हौं सब पतितनि कौ राउ।
को करि सकै बराबरि मेरी, सो घौं मोहिं बताउ।
ब्याध, गीध, अरु पपित पूतना, तिनतैं बड़ौ जु और।
तिनमैं अजामील, गनकादिक, उनमैं मैं सिरमौर्।
जह-तह सुनियत यहै बड़ाई, मो समान नहिं आन।
और हैं आजकल के राजा, मैं तिनमैं सुलतान।
अब लगि प्रभु तुम बिरद बुलाए, भई न मोसौं भेंट।
तजौ बिरद कै मोहिं उघारौ सूर कहै कसि फेंंट।।145।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः