हरि तुम्है बारंबार सम्हारै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



हरि तुम्है बारंबार सम्हारै।
कहौ तौ सब जुवतिनि के नाम कहौ, जे हित सौ उर धारै।।
कबहुँक आँखि मूँदि कै चाहति, सब सुख अधिक तिहारै।
तब प्रसिद्ध लीला सँग बिहरतिं, अब चित डोर बिहारै।।
जाकौ कोऊ जिहि बिधि सुमिरै, सोऊ तिहि हित मानै।
उलटी रीति सबै तुम्हरी है, हम तौ प्रगट कहि जानै।।
जो पतिया तुम लिखि पठवत हौ, बाँधि समुझि सब पाउ।
‘सूर’ स्याम है पलक धाम मैं, लखि चित कत बिलखाउ।।4133।।

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