हरि चरनारबिंद उर धरौ2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल
अर्जुन को निज रूप दर्शन तथा शंखचूड़ पुत्र आनयन


ब्राम्हन कह्यौ समै अब भयौ। अर्जुन धनुष बान तब लायौ।।
बालक ह्वै भयौ अंतर्धान। अर्जुन ह्वै रह्यौ चकित समान।।
बिप्र नारि तब गारी दई। कह्यौ, प्रतिज्ञा का ह्वै गई।।
तै पुरुषारथ कहँ तै पायौ। मिथ्या ही कहि बाद बढ़ायौ।।
हरि सौ दुख अब कहिहौ जाइ। अर्जुन कह्यौ तासौ या भाइ।।
तेरे सुत कौं मैं अब ल्याऊँ। तेरौ सब संताप नसाऊँ।।
अर्जुन तिहूँ लोक फिरि आयौ। पै सो बालक कहूँ न पायौ।।
अर्जुन बिप्र स्याम पै आए। हरि अर्जुन सौ बचन सुनाए।।
तुम बालक काहे नहि राख्यौ। सो बृत्तांत हमैं तुम भाषौ।।
कह्यौ जु मैं परतिज्ञा करी। सो मोसौ पूरी नहिं परी।।
बालक होत कौन लै ग़यौ। सो मोकौ कछु ज्ञान न भयौ।।
मैं देख्यौ तिहिं त्रिभुवन जाई। पै ताकी कहुँ सुधि नहिं पाई।।
बिप्र काज प्रभु अब तुम करौ। ना तरु मोकौ जानौ मरौ।।
हरि रथ पर अर्जुन बैठाइ। पहुँचे लोकालोकहि जाइ।।
ह्वाहूँ तै पुनि आगै धाए। दारुक हरि सौ बचन सुनाए।।
अंधकार मग नहिं दरसाइ। तातै रथ नहिं सकत चलाइ।।
चक्र सुदरसन आगै कियौ। कोटिक रवि प्रकास तहँ भयौ।।

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