हरि कर राजत माखन-रोटी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



हरि कर राजत माखन-रोटी।
मनु बारिज ससि बैर जानि जिय गह्यौ सुधा ससुधौटी।
मेली सजि मुख-अंबुज-भीतर, उपजी उपमा मोटी।
मनु बराह भूधर-सह-पुहुमी धरी दसन की कोटी।
नगन गात मुसुकात तात-ढिग नृत्य करत गहि चोटी।
सूरज प्रभु की लहै जू जूठनि, लारनि ललित लपोटी।।164।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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