हरिमुख निरखति नागरि नारि।
कमल नैन के कमलबदन पर, वारिज वारिज वारि।।
सुमति सुंदरी सरस-पिया-रस-लपट माँडी आरि।
हरि जुहारि जू करत बसीठी, प्रथमहिं प्रथम चिन्हारि।।
राखति ओट कोटि जतननि करि, झाँपति अंचल झारि।
खंजन मनहुँ उड़न कौं आतुर, सकत न पंख पसारि।।
देखि सरूप स्याम सुंदर कौं, रही न पलक सम्हारि।
देखहु सूरज अधिक ‘सूर’ तन, अजहुँ न मानी हारि।।1816।।