हमकौ इती कहा गोपाल।
नंदकुमार कमलदल लोचन, सुंदर बाहु बिसाल।।
इक ऐसेही विरह रही लटि, बिनु घनस्याम तमाल।
तापर अलि पठये है सिखवन, अबलनि उलटी चाल।।
लोचन मूँदि ध्यान चित चितवत, धरि आसन मृगछाल।
क्यौ सहि जाइ जरे पर चूनौ, दूनौ दुख तिहिं काल।।
डारि न दिये कमल कर तै गिरि, दबि मरती तिहिं काल।
‘सूर’ स्याम अब यह न बूझियै, बिछुरि करी बेहाल।।3738।।