हँसत कहति कीधौं सत भाउ।
तेरी सौं मैं कछू न समुझति, कहा कह्यौ मोहिं बहुरि सुनाउ।।
मेरी सपथ तोहिं री सजनी, कबहूँ कछु पायौ यह भाउ।
देख्यौ नैन, सुन्यौ कहुँ स्रवननि, झूठैं कहति फिरति हौ दाउ।।
यह कहती औरै जौ कोऊ, तासौं मैं करती अपडाउ।
सूरदास यह मोहिं लगावति, सपनेहुँ नहिं जासौं दरसाउ।।1701।।