स्‍याम कहा चाहत से डोलत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी



स्‍याम कहा चाहत से डोलत?
पूछे तैं तुम बदन दुरावत, सूधे बोल न बालत।
पाए आइ अकेले घर मैं, दधि-भाजन मैं हाथ।
अब तुम काकौ नाउँ लेउगे, नाहिंन कोऊ साथ।
मैं जान्‍यौ यह मेरौ घर है ता धोखैं मैं आयौ।
देखत हौं गोरस मैं चींटी, काढ़न कौं कर नायौ।
सुनि मृदु बचन, निरखि मुख-सोभा ग्‍वालिनि मुरि मुसुकानी।
सूर स्‍याम तुम हौ अति नागर बात तिहारी जानी।।279।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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