स्यामहृदय जलसुत की माला, अतिहि अनुपम छाजै (री)।
मनहुँ बलाकपाँति नवधन पर, यह उपमा कछु भ्राजै (री)।।
पीत, हरित, सित, अरुन मालवन, राजति हृदय बिसाल (री)।
मानहुँ इंद्रधनुष नभमंडल, प्रगट भयौ तिहिं काल (री)।।
भृगु-पद-चिह्न उरस्थल प्रगटे, कौस्तुभ मनि ढिग दरसत (री)।
बैठे मानौ पट बिधु इक संग, अर्द्ध निसा मिलि हरषत (री)।।
भुजा बिसाल स्याम सुंदर की, चंदनखौरि चढ़ाए (री)।
‘सूर’ सुभग अँग अँग की शोभा, ब्रजललना ललचाए (री)।।1807।।