स्याम सुंदर आवत वन तै बने, भावत आजु देखि देखि छबि, नैन रीझे।
सीस पै मुकुट डोल, स्रवन कुंडल लोल, भ्रकटि धनुष, नैन, खंज खीझे।
दसत दामिनी ज्योति, उर पर माल मोति, ग्वाल बाल संग आवैं रंग भीजे।
सूर-प्रभु राम-स्याम, संतनि के सुखधाम, अंग-अंग प्रति छबि, देखि जीजै।।1374।।