एक बनाइ देति बीरी, करपल्लव छुवति कपोल।
धन्य धन्य बड़ भाग सबनि के, बस कीन्हे बिनु मोल।।
उड़त गुलाल अबीर कुमकुमा, छवि छाई जनु साँझ।
नाही दृष्टि परत राधा-मुख-चंद नीलांबर माँझ।।
खेलि फाग अनुराग बढ़यौ, धर मची अरगजाकीच।
ब्रजबनिता कुमुदिनि सी फूली, हरि ससि राजत बीच।।
अष्ट सिद्धि, नव निधि, ब्रजबीथिनि डोलति घर घर बार।
सदा बसंत बसत वृंदावन, लता लता द्रुमडार।।
देखि देखि सोभा-सुख-संपति, जिय मैं करति बिचार।
ब्रजबनिता हम क्यौ न भईं, यौं कहति सकल सुरनार।।
फाग खेलि अनुराग बढ़ायौ, सबकै मन आनंद।
चले जमुन अस्नान करन कौ, सखा, सखी नँदनंद।।
दुष्टनि दुख, संतनि-सुख-कारन, ब्रजलीला अवतार।
जै जै ध्वनि सुमननि सुर बरषत, निरखत स्याम बिहार।।
जुगल-किसोर-चरन-रज माँगौ, गाऊँ सरस धमारि।
श्रीराधा गिरिवरधर ऊपर, 'सूरदास' बलिहारि।।2907।।