स्याम मुख देखै ही परतीति।
जौ तुम कोटि जतन करि सिखवहु, जोग ध्यान की रीति।।
नाहिंन कछू सयान ज्ञान मैं, यह हम कैसै मानैं।
कहौ कहा गहियै अनुभव कौ, कैसै उर मैं आनै।।
यह मन एक, एक वह मूरति, भृंगी कीट समानै।
‘सूर’ सपथ दै पूछौ ऊधौ, इहिं ब्रज लोग सयानै।।3990।।