स्याम चतुरई जानति हौ।
ये गुन तुम अजहूँ नहिं छाँड़त, इन छंदनि मैं मानति हौ।।
तुम रसवाद करन अब लागे, जे सब तेउ पहिचानति हौ।
वै बातै अब दूरि गई जू, ते गुन गुनिगुनि गानति हौं।।
यह कहि बहुरि मान गहि बैठी, जिय ही जिय अनुमानति हौ।
'सूर' करौ जोइ जोइ मन भावै, यहै बात कहि भानति हौ।।2818।।