स्याम गह्यौ भुज सहजहीं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल


स्याम गह्यौ भुज सहजही, क्यौ मारत हमकौ।
कस नृपति की सौह है, पुनि पुनि कहि तुमकौ।।
पहुँचा कर सौ नहि रहे, जिय सकट मेल्यौ।
डारि दियौ तिहि सिला पर, बालक ज्यौ खेल्यौ।।
तुरत गयौ उड़ि स्वर्ग कौ, ऐसे गोपाला।
जनम मरन तै रहि गयौ, वह कियौ निहाला।।
रजक भजे सब देखिकै, नृप जाइ पुकारयौ।
'सूर' छोहरनि नद के, नृप सेठिहि मारयौ।।3040।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः