स्याम कौ यहै परेखौ आवै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


 
स्याम कौ यहै परेखौ आवै।
तब वह प्रीति चरन जावक सिर, अब कुबिजा मन भावै।।
तब कत पानि धरयौ गोवरधन, कत ब्रज बिपति छँड़ावै।
अब वह रूप अनूप कृपा करि, नैननि क्यौ न दिखावै।।
तब कत बेनु अधर धरि मोहन, लै लै नाम बुलावै।
अरु कत लाड़ लड़ाइ राग, रस, हँसि हँसि कंठ लगावै।।
जे सुख संग समीप रैनि-दिन, तिन कत जोग सिखावै।
जिहि मुख अमृत पियौ रसना भरि, तिहि क्यौ बिषहि पियावै।।
कर मीड़ति पछिताति मनहि मन, क्रम क्रम करि समुझावै।
सोइ सुनि 'सूरदास' अब विरहिनि, इहि दुख दुख अति पावै।।3655।।

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