स्याम कह्यौ तब भोजन ल्यावहु। गिरि आगैं सब आनि घरावहु।।
सुनत नंद तहं ग्वाल बुलाए। भोग-समग्री सबै मँगाए।।
षट रस की बहु भाँति मिठाई। अन्यल भोग अतिही बहुताई।।
ब्यंजन बहुत भाँति पहुँचाए। दधि लवनी मधु-माट धराए।।
दही बरा बहुतै परुसाए। चंदहिं की पटतर ते पाए।।
अन्नकूट जैसौ गोबर्धन। अरु पकवान धरे चहुँ कोदन।।
परुसत भोजन प्रातहिं तैं सब। रवि माथे तैं ढरकि गयौ अब।।
गोपनि कह्यौ स्याम ह्याँ आवहु। भोग धरयौ सब गिरिहिं जेंवावहु।।
सूर स्याम आपुनही भोगी। आपुहिं माया आपुहिं जोगी।।908।।