सोवत नींद आइ गई स्यामहिं।
महरि उठी पौढ़ाइ दुहुँनि कौं, आपु लगी गृह कामहिं।
बरजति है घर के लोगनि कौं, हरुऐं लै-लै नामहिं।
गाढै़ बोलि न पावत कोऊ, डर मोहन बलरामहिं।
सिव सनकादि अंत नहिं पावत, ध्यावत अह-निसि-जामहिं।
सूरदास-प्रभु ब्रह्म सनातन, सो सोवत नँद-धामहिं।।515।।