सैन साजि ब्रज पर चढ़ि धावहिं।
प्रथम वहाइ देहिं गोवर्धन, ता पाछै ब्रज खोदि बहावहिं।।
अहिरनि बरी अवज्ञा प्रभु की, सो फल उनकौं तुरत दिखावहिं।
इंद्रहिं पेलि करी गिरि-पूजा, सलिल बरसि ब्रज-नाउँ मिटावहिं।।
बल समेत निसि-बासर बरसहिं, गोकुल बोरि पताल पठावहिं।
सूरदास सुरपति की आज्ञा, यह भूतल कहूँ रहन न पावहिं।।856।।