सैन दै प्यारी लई बुलाई।
खेलन कौ मिस करि कै निकसे खरिकहिं गए कन्हाइ।।
जसुमति कौं कहि प्यारी निकसी घर को नाउँ सुनाइ।
कर दोहनी लिए तहँ आई, जहँ हलधर के भाइ।।
तहाँ मिलीं सब संग-सहेली, कुँवरि कहाँ तू आई?
प्रातहिं धेनु दुहावन आई, अहिर तहाँ नहिं पाई।।
तबहिं गई मैं ब्रज उतावली, आई ग्वाल बुलाइ।
सूर स्याम दुहि देन कह्यौ, सुनि राधा गइ मुसुकाइ।।728।।