ऊधौ जोग सिखावन आए।
सृंगी भस्म अधारी मुद्रा, दै ब्रजनाथ पठाए।।
जो पै जोग लिख्यौ गोपिनि कौ, कत रस रास खिलाए।
तबही क्यौ न ज्ञान उपदेस्यौ, अधर सुधारस प्याए।।
मुरली सब्द सुनत बन गवनी, सुत, पति गृह बिसराए।
'सूरदास' सँग छाँड़ि स्याम कौ, हमहिं भए पछिताए।।3603।।