सूरसागर सप्तम स्कन्ध पृ. 247

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सूरसागर सप्तम स्कन्ध-247

विनय राग

420.राग बिलावल - श्री नृसिंह अवतार
हरि हरि, हरि,हरि, सुमिरन करौ। हरि चरनारविंद उर धरौ।
हरि-चरननि शुकदेव सिर नाइ। राजा सौं बौल्यौ या भाइ।
कहौं सो कथा, सुनौ चित लाइ। सूर तरौ हरि के गुन गाइ।।1।।

421.राग बिलावल - श्री नृसिंह अवतार
नरहरि - नरहरि, सुमिरन करौ। नरहरि-पद नित हिरदय धरौ।
नरहरि-रूप धरयौ जिहिं भाइ। कहों सो कथा, सुनौ चित लाइ।
हरि जब हिरन्याच्छ कौं मारयौ। दसन-अग्र पृथ्वी कों धारयौ।
हिरनकसिप सों दिति कह्यौ आइ। भ्राता वैर लेहु तुम जाइ।
हिरनकसिप दुस्सह तप कियौ। ब्रह्मा आइ दरस तब दियौ।
कहयौ तोहिं इच्छा जो होइ। माँगि लेहि हमसों वर सोइ।
राति-दिवस नभ-धरनि न मरौं। अस्त्र-सस्त्र-परहार न डरौं।
तेरी सृष्टि जहाँ लगि होइ। मोकों मारि सकै नहिं कोइ।
ब्रह्मा कह्यौ, ऐसियै होइ। पुनि हरि चाहै करिहै सोइ।
यह कहि ब्रह्मा निज पुर आए। हिनकसिप निज भवन सिधाएं।
भवन आइ त्रिभुवनपति भए। इन्द्र बरून, सबही भजि गए।
ताकौ पुत्र भयौ प्रहलाद। भयौ असुर-मन अति अहलादं।
पाँच वरस की भइ जब आइ। संडामर्कहि लियों बुलाइै।
तिनकै सँग चटसार पठायौ। राम-राम सौं तिन चित लायौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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