सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 96

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सूरसागर प्रथम स्कन्ध-96

विनय राग


191.राग धनाश्री
तौ लगि बेगि हरौ किन पीर ?
जौ लगि आन न आनि पहुँचे, फेरि परैगी भीर।
अबहिं निवछरौ समय, सुचित ह्वै हम तो निधरक कीजै।
औरौ आइ निकसिहैं तातै, आगै है सो लीजै।
जहाँ तहाँ तै सब आवैगे सुनि सुनि सस्‍तौ नाम।
अब तौ परयौ रहैगौ दिन-इिन तुमकौं ऐसौ काम।
यह तो बिरद प्रसिद्ध भयौ जग, लोक-लोक जस कीन्‍हौ।
सूरदास प्रभु समुझि देखियै मैं बड़ तोहि करि दीन्‍हौं।

192.राग धनाश्री
माधौ जू, हों पतित-सिरोमनि।
और न कोई लायक देखौं, सत-तत अध प्रति रोमनि।
अजामील मनिकाअरू व्‍याघ, मृग, ये सब मेरे चटिया।
उनहूँ जाइ सौंह दै पूछौ, मैं करि पठयौ सटिया।
यह प्रसिद्ध सबही की संमत बड़ौ बड़ाई पावै।
ऐसौ को अपने ठाकुर कौ इहि विधि महत घटावै।
नाहक मैं लाजनि मरियत है, इहाँ आइ सब नासौ।
यह तौ कथा चलैगी आगैं, सब पतितनि मैं हाँसी।
सूर सुमारग फेरि चलैगौ, वेद-नचन उर धारौ।
बिरद छुड़ाइ लेहु बलि जपनौ, अब इहि तैं हद पारौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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