सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 79

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सूरसागर प्रथम स्कन्ध-79

विनय राग


159.राग केदारौ
बहुरि की कृपाहू कहा कृपाल ?
विद्यामान जन दुखित जगत मैं, तुम प्रभु दीन दयाल ?
जीवत जांचत कन-कन निर्धन, दर-दर रटत बिहाल।
तन छूटे तै धर्म नहीं बछु, जौ दीजै मनि-भाल।
कह दाता जो द्रवै न दीनहिं देखि दुखित ततकाल।
सूर स्‍याम कौ कहा निहोरौ, चलत वेद की चाल।

160.राग कैदारौ
कौन सुनै यह बात हमारी ?
समरथ और देखौं तुम बिनु कासौं बिथा कहौं बनवारी ?
तुम अविगत, अनाथ कै स्‍वामी, दीनन्‍दयाल, निंकुज-बिहारी।
सदा सहाइ करी दासनि की, जो उर धरी सौइ प्रतिपारो।
अब किहिं सरन जाउँ जादौपति, राखि लेहु बलि त्रास निवारी।
सूरदास चरननि की बलि-बलि, कौन खता तैं कृपा बिसारी ?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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