135.राग नट
कहावत ऐसे त्यागी दानि।
चारि पदारथ दिए सुदामहिं अरु गुरु के सुत आनि।
रावन के दस मस्तक छेदे, सर गहि सारंग-पानि।
लंका दई विभीषन जन कौं, पूरवली पहिचानि।
विप्र सुदामा कियौ अजाची, प्रीति पुरातन जानि।
सूरदास सौं कहा निहोरौ नैननि हूँ की हानि।
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136.राग धनाश्री
मोसौं बात सकुच तजि कहियै।
कत ब्रीड़त, कोउ और बतावौ, ताही के ह्रै रहिये।
कैधौं तुम पावन प्रभु नाहीं कै कछु मो मैं भोलौ।
तौ हौ अपनी फेरि सुधारौ, बचन एक जो बोलौ।
तौन्यौ पल मैं ओर निबाहै, इहै सर्वांग को काछे।
सूरदास कौं यह बड़ौ दुख, परत सबनि के पाछे।
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