सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 46

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सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 46

विनय राग


91.नाम-महिमा राग बिलावल
अब तुम नाम गहो मन नागर।
जातैं काल-अगिनि तै वांची, सदा रहौ सुखसागर।
मारि न सकै, बिधन नहिं ग्रासै, जम न चढ़ावै कागर।
किया-कर्म करतहु निसि-बासर भक्ति कौ पंथ उजागर।
सोचि विचारि कसल स्‍त्रु ति-संमति, हरि तै और न आगर।
सूरदास प्रभु इहिं औसर भजि उतरि चलौ भवसागर।

92.राग सारंग
हमारे निर्धन के धन राम।
चोर न लेत, घटत नहिं कबहूं, आवत गाढ़ै काम।
जल नहिं बूडत, आगिनि न दाहत, है ऐसौ हरि-नाम।
बैकुंठनाथ सकल सुख दाता, सूरदास-सुख-धाम।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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