सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 40

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सूरसागर प्रथम स्कन्ध-40

विनय राग


79.राग धनाश्री
प्रीतम जानि लेहु मन माही।
अपनै सुख कौं सब जग बांध्‍यौ, कोउ काहू कौ नाहीं।
सुख मैं आइ सबै मिलि बैठत, रहत चहं दिसि घेरे।
विपति परी तब सब संग छांडे, कोउ न आवै नेरे।
घर की नारि बहुत हित जासौ, रहति सदा संग लागी।
जा छन हंस तजी यह काया, प्रेत प्रेत कहि भागी।
या विधि कौ ब्‍यौपार वन्‍यौ जग, तासौं नेह लगायौ।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु नाहक जनम गंवायौ।

80.राग विलावल
क्‍यौं तू गोविंद नाम विसारौ।
अजहूँ चेति, भजन करि हरि कौ, काल फिरत सिर ऊपर भारौ।
धन-सुत दारा काम न आवैं, जिनहिं लागि आपुनपौ हारौ।
सूरदास भगवंत-भजन विनु, चल्‍यौ पछिताइ, नयन जल ढारौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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