61.राग सारंग
अब कैसै पैयत सुख मांगे।
जैसोइ बोइऐ तैसोइ लुनिऐ, कर्मन भोग अभागे।
तीरथ-व्रत कछुवै नहिं कीन्हौ, दान दियौ नहिं जागे।
पछिले कर्म सम्हारत नाहीं, करत नहीं कछु आगे।
बोवत बबुर दाख फल चाहत, जेवत है फल लागे।
सूरदास तुम राम न भजि कै, फिरत काल संग लागे।
62.राग सारंग
रे मन, गोविंद के ह्यै रहियै।
इहिं संसार अपार बिरत ह्यै, जम की त्रास न सहियै।
दुख, सुख, कीरति, भाग आपनै आइ परै सो गहियै।
सूरदास भगवंत भजन करि अंत बार कछु लहियै।