सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 31

Prev.png

सूरसागर प्रथम स्कन्ध-31

विनय राग


61.राग सारंग
अब कैसै पैयत सुख मांगे।
जैसोइ बोइऐ तैसोइ लुनिऐ, कर्मन भोग अभागे।
तीरथ-व्रत कछुवै नहिं कीन्‍हौ, दान दियौ नहिं जागे।
पछिले कर्म सम्‍हारत नाहीं, करत नहीं कछु आगे।
बोवत बबुर दाख फल चाहत, जेवत है फल लागे।
सूरदास तुम राम न भजि कै, फिरत काल संग लागे।

62.राग सारंग
रे मन, गोविंद के ह्यै रहियै।
इहिं संसार अपार बिरत ह्यै, जम की त्रास न सहियै।
दुख, सुख, कीरति, भाग आपनै आइ परै सो गहियै।
सूरदास भगवंत भजन करि अंत बार कछु लहियै।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः