सुरतसमै के चिह्न राधिका राजत रंग भरे।
जहँ जहँ रतिरन कोप कियौ पिय तहँ कर दसन धरे।।
आड़ मिटी छूटी अलकावलि लोचन अलस खरे।
मानहुँ धनुष धरे कर साज्यौ तून के बान झरे।।
सिंधु-सुता-तनु रोमराजि मिलि राजत बरन खरे।
मानहुँ बिधु मनकामना तीरथ तप करि तीर परे।।
दसन अक सहि पीक प्रगट मुख सन्मुख हू न डरे।
‘सूर’ स्याम सोभा सुखसागर सब अँग भरनि भरे।। 93 ।।