सुनि सुनि वचन नारि मुसुकानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी


सुनि सुनि वचन नारि मुसुकानी।
गई सदन अति ह्वै उतावली, आनंद सहित लजानी।।
फूली फिरति कहति नहिं काहूँ, मीन मिल्यौ जनु पानी।
बारंबार स्याम रतिरस की, कही प्रगट करि बानी।।
बासर कल्प समान, न बीतत, कैसैहुँ रैनि तुलानी।
'सूर' देखि गति गत पतंग की, अवधि जानि हरषानी।।2494।।

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