धन्य नंद कौ गेह, धन्य गोकुल जहँ आए।
धनि गोकुल की नारि जिन्हैँ तुम रोकन धाए।।
धनि धनि झगरौ आजु कौ, इहिं सुख नाहिन पार।
नंद-नंदन पर कीजियै, तन-मन-धन बलिहार।।
तब दधि आगैं धरयौ, कान्ह लीजै जो भावै।
ग्वाइ जाइ मंजार, काज एकौ नहिं आवै।।
हम अनखाँ या बात काँ लेत दान कौ नाउँ।
सहज भाव रहौँ लाड़िले, बसत एक ही गाउँ।।कहति ब्रजनागरी।।
अभरन दियोँ मँगाई, कियौ गोपिनि मन मायौ।
हिलि मिलि बढ़यौ सनेह, आपु कर माठ उठायौ।।
नंद-नँदन छबि देखिकै, गोपिनि बारयौ प्रान।
कुंज-केलि मन मैँ वसी,गायौ सूर सुजान।।1618।।