सुनियत कहूँ द्वारिका बसाई।
दच्छिन दिसा तीर सागर कै, कंचन कोट गोमती खाई।।
पंथ न चलै सँदेस न आवै, इती दरि नर कोउ न जाई।
सत जोजन मथुरा तै कहियत, यह सुधि एक पथिक पै पाई।।
सब ब्रज दुखी नंद जसुदाह, इक टक स्याम राम लव राई।
'सूरदास' प्रभु के दरसन बिन, भई बिदित ब्रज काम दुहाई।। 4262।।