सुकदेव कह्यौ, सुनौ हो राव5 -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल
च्यवन ऋषि की कथा


 
कह्मौ, नेह हमै कासौ आह। बिना काम हमरै नहि चाह।
हमसौं सहस बरष हित धरै। हम तिनकौं छिन मैं परिहरैं।
बिनु अपराध पुरुष हम मारै। माया-मोह न मन मैं धारैं।
हमैं कहौ केतौ किन कोइ। चाहैं करन करै हम सोइ।
नृप पुनि विनती बहु विधि करी। तब उदबसी बात उच्चरी।
बरस सात बीतैं हौं ऐहौ। एक रात्रि तोकौं सुख देहौं।
बरस सात बीतै सो आई। नृप तासौं मिलि रैनि बिताई।
प्रात होत चलिवे कौं चह्यौ। तब राजा तासो सुख देहौं।
तू मोकौं छाँड़े कत जाइ। मोकौं तुव बिन छिन न सुहाइ।
जब या भाँति नृपति वहु कह्मो। तब उरबसि उत्तर यौ दयौ।
यह तौ होनहार है नाहीं। सुरपुर छाँडि़ रहौ भुवामाहीं।
जौ तुम मेरी इच्छा धरौ गंधर्वनि कै हित तप करौ।
तप कीन्है सो दैहैं आग। ता सेती तुम कीनौ जाग।
जज्ञ कियैं गंध्रबपुर जैहो। तहाँ आइ मोकौ तुम पैहो।
नृपज ग करि तिहिं लोक सिधायौ। मिलि उरवसी बहुत सुख पायौ।
जब या विधि बहु काल गँवायौ। तब वैराग नृपति मन आयौ।
बहुतै काल भोग मै किए। पै संतोष न आयौ हिए।
श्रीनारायन कौं बिसरायौ। बिषय-हेत सब जनम गँवायो।
या विधि जब विरक्त नृप भयौ। छाँडि़ उरवसी बन कौ गयौ।
बन मै जाइ तपस्या करी। विषय-वासना सब परिहरी।
हरि-पद सो नृप ध्यान लगायौ। मिथ्या तनु कौं मोह भुलायौ।
हरि व्यापक सब जग मैं जान। हरि प्रसाद पायौ निरवान।
तातें बुध तिय-संगति तजैं। श्रीनारायन कौं नित भजैं।
सुक जैसें नृप कौं समुझायौ। सूरदास त्यौं ही कहि गायौ।।2।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः