साँवरौ ढोटा को है माई, बारिज नैन बिसाल।
अधर धरे मुख मुरलि बजावत, गावत राग रसाल।।
मद मद मुसुकनि सरोज मुख, सोभा बरनि न जाइ।
बाँकी भौहै, तिरछी चितवनि, चित वित लियौ चुराइ।।
अति लोने सोने के कुंडल, कोनै रचे सँवारि।
मनौ काम किल फंद बनाए, फँदी मीन ब्रजनारि।।
सिर पगिया, बीरा मुख सोहै, सरस रसीले बोल।
अति आधीन भईं ब्रज बनिता, बस कीन्हौ बिनु मोल।।
कहा करौ देखे बिनु सजनी, कल न परै पल प्रान।
ग्वालनि संग रंग भरयौ भावत, गावत आछी तान।।
तातै और कौन हितु मेरै, सखि चलि नैकु दिखाइ।
मदनमोहन की चरनरेनु पर, 'सूरदास' बलि जाइ।।2875।।