गुप्त मते की बात कहौ, जो कहौ न काहू आगै।
कै हम जानै कै हरि तुमहूँ, इतनी पावहि माँगै।।
एक बेर खेलत वृंदावन, कंटक चुभि गयौ पाइ।
कंटक सौ कंटक लै काढ्यौ, अपनै हाथ सुभाइ।।
एक दिवस बिहरत बन भीतर, मैं जु सुनाई भूख।
पाके फल वै देखि मनोहर, चढ़े कृपा करि रुख।।
ऐसी प्रीति हमारी उनकी, बसतै गोकुल वास।
'सूरदास' प्रभु सब बिसराई, मधुबन कियौ निवास।।3822।।