सखी सबै मिलि कान्ह निहारौ।
जसुमति उर लावति, कर पल्लव सात दिवस गिरि धारौ।।
पूजा बिधि मेटो जु सक्र की, तिनि जिय द्रोह बिचारौ।।
छाँड़ै मेघ मत्त परलै के, गरजि गयँद-सुँडि धारौ।।
अति आरत जाने ब्रजबासी, सिसु गिरि नैंकु निहारौ।
अनायास अहि-छत्र छिनक मैं, खेलत माँभ उपारौ।।
सुरपति कौ कियौ मान-भंग हरि, ब्रज आपनौ उबारौ।
सूरदास कौ जीवन गिरिधर, जसुमति-प्रान-दुलारौ।।968।।