सखि सोभा अनुपम अति राजै।
नैन कोन की अंजन रेखा, पटतर कहूँ न छाजै।।
खंजरीट मनु ग्रसित पन्नगी, यह उपमा कछु आवै।
दुग्ध सिंधु की गरल कला ज्यौ, कोटिक भ्रम उपजावै।।
की सुरसरिता तट रवितनया, की पय पियति भुअंगिनि।
की अति मान मानि सागर तै, उलटी जमुन तरंगिनि।।
समरारी कौ सुजस, कुजस की, प्रगट एक ही काल।
किधौं रुचिर राजीव कोप तैं निकसि चली अलि माल।।
'सूरदास' दासनि हितकर की, हरि हलधर की जोरी।
राधावर निसि रसिकसिरोमनि, कविकुल परी ठगौरी।।2648।।