सँदेसौ देवकी सौ कहियौ ।
हौ तौ तिहारे सुत की, मया करत ही रहियौ ।।
जदपि टेब तुम जानतिं उनकी, तऊ मोहिं कहि आवै ।
प्रात होत मेरे लाल लड़ैतै, माखन रोटी भावै ।।
तेल उबटनौ अरु तातौ जल, ताहि देखि भजि जाते ।
जोइ जोइ माँगत सोइ सोइ देती, क्रम क्रम करि कै न्हाते ।।
‘सूर’ पथिक सुनि मोहिं रैनि दिन, बढ्यौ रहत उर सोच ।
मेरौ अलक लड़ैतौ मोहन, ह्वैहै करत सँकोच ।। 3175 ।।