श्रीदामा गोपिनि समुझावत।
हँसत स्याम के तुम कह जान्यौ, काहैं सौंह दिवावत।।
तुमहूँ हँसौ आपनैं सँग मिलि, हम नहिं सौंह दिवावैं।
तरुनिनि की यह प्रकृति अनैसी, थोरिहिं बात खिसावैं।।
नान्हे लोगनि सौंह दिवावहु, ये दानी प्रभु सबके।
सूर स्याम कौं दान देहु रा, माँगत ठाढ़े कब के।।1573।।